Wednesday, February 23, 2011

रिटर्न आफ भोपू ......


...एक भोंपू जो कभी जमकर बजा करता था ... न केवल बजा करता था बल्कि इससे निकलने वाली हर आवाज़ लोगों को एक हद तक दीवाना भी बना दिया करती थी ... भोंपू को शायद इस बात का घमंड सा हो गया ... फिर क्या था ... भोंपू ने अपनी हर तान को फरमान का जामा पहनना शुरू कर दिया ... हालात ये बने की अब भोंपू से निकलने वाली आवाज़ अवाम की आवाज़ कम बल्कि लोगो के लिए चुनौतियाँ ज्यादा साबित होने लगीं... भोंपू इन सब बातों से बेफिक्र अपनी धुन में मस्त रहा ... अब भोंपू द्वारा लोगों को दी जा चुकी चुनौतियों की फेहरिश्त इतनी लम्बी हो चली थी की उसे याद रख पाना मुनासिब न रहा ... ऐसे में अपनी आत्ममुग्धता से सराबोर भोंपू ने कुछ नया हंगामा करने की फ़िराक में यह चुनौती दे डाली कि यदि कोई भोंपू उससे ज्यादा तेज बजता है तो वह आज के बाद से सरकारी मंच पर बजना छोड़ देगा ... अब बेचारे भोपू को क्या पता था कि एक वैरागन कोयल कि कूक उसकी दहाड़ती बुलंद आवाज़ पर इतनी भरी पड़ेगी कि उसे ना चाहते हुए भी वैरागी होना पड़ेगा ... एक तब का दिन था कि भोंपू खुद ही अपनी आवाज़ से डरने लगा था ... कुछ बोलना तो दूर बोलने का जिक्र आने पर ही उसे तेज बुखार चढने लगता था ... लेकिन आदत भी तो कोई चीज़ होती है ... जो भोंपू लगातार कई वर्षों तक बजता रहा हो आखिर उसे अपनी यह ख़ामोशी कैसे बर्दाश्त हो ... सो भोंपू ने पहले तो छुप छुप कर बोलने का खूब रियाज़ किया और बाद में ज़रा आत्मविश्वास पैदा होने पर अपने आकाओं को विश्वास दिलाया कि आज भी वह पहले कि तरह सुरीला तो नहीं लेकिन बोल जरूर सकता है ... आकाओं कि सख्त नसीहत पर भोंपू ने संकल्प लिया कि वह सिर्फ वही बोलेगा जो उससे बोलने के लिए कहा जायेगा ...हालाँकि आकाओं ने भोंपू को यह बात अपने अंदाज में कहने कि छूट दे दी ... फिर क्या था भोपू लगा बजने ... भोंपू ने इस बार अपनी गाल बजाई से आकाओं का भी दिल जीत लिया ... यही वजह रही कि आकाओं ने खुश होकर उसे कुछ अपने मन से भी बजने की छूट दे दी ... हालत ये हो चले कि अब देश दुनिया में किसी के मुंह से कोई बात निकली की नहीं कि भोंपू लगा बजने... भोंपू की इस आदत को कोई उम्र का दोष बताता है तो कोई इसे इतने वर्षो कि मंचहीन त्रासदी का आफ्टर शाक करार देता है... मगर भोंपू आज भी पहले की ही तरह बेपरवाह है उसे तो बस इस बात कि खुशी है कि वह फिर से बजने लगा है ... कई बार ऐसे मौके भी आयें जब इस भोंपू के आकाओं ने उसकी आवाज़ को पहचानने ने इंकार तक कर दिया ... मगरस्वामी भक्त भोंपू लगातार बजता ही रहा ... चाहे मंदिर के घड़ियाल हो या मस्जिद कि अजान भोपू ने हर मौके पर अपना गाल बजाना जरी रखा ... ये बात अलग है कि इस भोपू को मंदिर के घडियालों से जुगलबंदी कुछ ज्यादा ही भाती है... बेचारा भोंपू आज अपनी उसी आवाज़ पर लोगों कि हसी का पत्र बन चुका है जिस आवाज़ पर उसे कभी गर्व हुआ करता था ...
...संजय उपाध्याय...

Wednesday, February 9, 2011

टँगी मुसीबतें...

.... आइसक्रीम के पहाड़ , दूध की नदियाँ और पेड़ पर लटकी टाफियां ... एक फ़िल्मी गाने में यह दृश्य देख कर मुझे अनायास ही कुछ ख्याल आया और मै कल्पनाओ के परवाज पर सवार हो उडान भरने लगा ... मैं सोचने लगा कि यदि टाफियों की तरह मुसीबतें भी पेड़ो पर उगा करती तब कैसा होता ... सभी के अपने घर और उस घर के पेड़ों पर साफ़ साफ़ लटकती अपनी अपनी मुसीबतें ... मै कुछ इसी उधेड़बुन मे लगा ही था कि तभी सफ़ेद घोड़े पर सवार एक यक्ष दहाड़ता मेरे सामने प्रगट हो गया ... तीखे तेवर अपनाता स्निग्ध श्वेत वर्णी यक्ष मुझसे कुछ कहता उससे पहले ही मै बोल उठा ... आखिर मेरा कसूर क्या है ... यक्ष अपना तेवर बदले बिना लगभग उसी अंदाज मे बोला " मृत्युलोक में रहकर भी स्वर्गलोक की कल्पना... मेरे अन्दर मची हलचल से बिलकुल अनभिज्ञ यक्ष तभी नसीहत के अंदाज में बोला ... अगर लोगों की मुसीबतें यु पेड़ों पर लटकी अगर दिखाई देने लगी तब दुनिया में तो हर शख्स खुशहाल हो गायेगा... यक्ष की बातें मुझे पहेली की तरह लगने लगीं ... यक्ष ने अपनी बात जरी रखतें हुए कहा " इन्सान अपनी ख़ुशी से कम खुश मगर दूसरों के गम से बहुत ज्यादा आल्हादित रहता है ... अगर ऐसे में वह अपने पड़ोस के पेड़ पर लटकती मुसीबतों को देखता रहेगा तब इस बात का सवाल ही नहीं की वह कभी दुखी हो ... भले ही उसका खुद का पेड़ मुसीबतों से भरा हो मगर उसे इस बात का सुकून होगा की उसके पडोसी के घर कुछ ही सही मगर मुसीबत तो है ... इस हालत में गम के क्विन्तालों बोझ तले दबे चेहरों पर भी सुकून की एक कुटिल ही सही मगर मुस्कान जरूर होगी... और यही तो स्वर्गलोक है जहा सभी के दिलों मैं सुकून हो और चेहरों पर मुस्कान"... यक्ष की बातें अब मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी थीं ... तभी स्वप्ना टूटा और मैं बहार निकल कर लोगों से नजरें बचाता हुआ कोई पेड़ तलाशने लगा ...

..... "प्रधानमंत्री जी"

...... "प्रधानमंत्री जी" मै सचमुच बेहद हैरान हूँ .... आखिर कोई इस तरह आप की उपेक्षा कैसे कर सकता है ... आप देश की कार्यपालिका के मुखिया हैं ... देश की संवैधानिक शक्तियों के अनुपालन का वैधानिक सोता भी आप की गंगोत्री से ही फूटता है ... फिर ऐसे में आप को हर बार दरकिनार कैसे किया जा सकता है... और आखिर ये लोग कौन है जो ऐसा करने पर लगातार आमादा है... क्या आप इन्हें पहचान नहीं पा रहे है या पहचान कर भी मजबूर है ... यह आप की कोई राजनैतिक विवशता है या व्यक्तिगत निष्ट का मसला ... सवालो की तो एक लम्बी फेहरिस्त है मगर जवाब ही नहीं मिल रहे हैं ... पहले आप के ही एक मंत्री राजा पर आप के आदेशों की नाफरमानी का आरोप लगा , फिर मुख्या सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति में आपको अँधेरे में रखने की बात सामने आयी... देश में आयोजित commenwelth गेम्स में पूरी दबंगई के साथ हुए अरबो के भ्रष्टाचार की खबर पूरी दुनिया में सुर्खियाँ बन आप को मुह चिढाती रहीं ... आखिर आप का ही तो चेहरा इस दुनिया की सबसे बड़ी दूसरी आबादी का प्रतिनिधि है ... आखिर हद तो तब हो गयी जब सीधे तौर पर आप कि अध्यक्षता वाले अंतरिक्ष आयोग से भ्रष्टाचार कि सड़ांध बहार निकली और वह भी इस देश के सबसे बड़े संभावित घोटाले के रूप में ... हर बार हमें सरकार के नहीं बल्कि एक पार्टी के प्रवक्ता के द्वारा बताया जाता रहा कि जो भी हुआ है वह सरकार को, मतलब आप को, अँधेरे में रख कर किया गया है ... प्रधानमंत्री जी ऐसा तो तभी हो सकता है जब या तो सरकार पर नौकरशाही हावी हो या फिर सरकार के मुखिया के तौर पर कोई छद्म चेहरा महज दिखावे के लिए जनता जनार्दन के सामने रखा गया हो ... अजेय नौकरशाही को वश में रखने का आपकी पार्टी का पुराना दावा है... " सरकार चलाना आता है ".... फिर ऐसे में न चाह कर भी इस दुसरे विकल्प कि ओर निगाहे अनायास ही ताकने लगती है , प्रधानमंत्री जी आप दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के महानायक है... इस लिहाज से आप इस देश के सर्वाधिक ताकतवर व्यक्ति है ... शायद देश कि जनता यह स्वीकार न कर पाये कि निर्णयन और नियमन के इस सोपान क्रम में इस देश के संविधान के आलावा भी कोई है जो आप के ऊपर है .... जनता को प्रधानमंत्री कि दरकार है नाकि सुपर प्रायीमिनिस्टर की...

Wednesday, February 2, 2011

बेहद शर्मनाक

शर्मनाक, सचमुच बेहद ही बेहयाई भरा आचरण .... मुख्य सतर्कता आयुक्त पी जे थामस के मामले में देश की केंद्रीय सरकार का संपूर्ण व्यक्तित्व निश्चित ही कुछ इस प्रकार की श्रेणी में ही नजर आ रहा है ... मुख्य सतर्कता आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण और साथ ही गरिमा युक्त पद पर पी जे थामस की नियुक्ति को इतना वक्त निकल जाने के बाद आज शायद सरकार की याददाश्त भी धुधली हो चली है... याददाश्त के धुधली होने की वजह भी इतनी मजबूरी भरी है की यदि ऐसे में कुछ याद आ भी जाए तो उसे मानने की जिगर गवाही नहीं देता... पामोलिन स्केंडल में थामस का नाम शुमार होने के बाद भी उन्हें इस पद से नवाजे जाने की यु पी ए सरकार की ऐसी कौन सी मजबूरी थी इस बात का खुलासा तो अब तक नहीं हो पाया है लेकिन इस मसले पर देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था को लगातार गुमराह किये जाने के केंद्र सरकार की नियत से तो इतना साफ हो चुका है कि सरकार कही ना कही दबंगई के साफ मूड में है ... थामस पर आरोप की जानकारी को सिरे से ख़ारिज करने वाली सरकार के एक प्रभावशली मंत्री पी चिताम्बरम कि इस मसले पर स्वीकारोक्ति के बाद यह पूरा मामला खुद ही आईने कि तरह साफ हो जाता है ... चिदंबरम की अपने ओरसे यह स्वीकारोक्ति भी उस वक्त आती है जब सी वी सी कि नियुक्ति के लिए बनाये गए पैनल कि एक सदस्य सुष्मस्वराज इस पूरे मामले का कच्चा चिट्टा खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करने कि तैयारी कर लेती है , जिन्होंने उस वक्त आरोपों से घिरे थोमस कि नियुक्ति पर सवाल खड़े किये थे ... संपूर्ण उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर काम करने वाले मंत्रिमंडल का इसे अब कौन सा रूप कहा जाए जहा कि मंत्रिमंडल के प्रभावशली सहयोगियों के बीच ही परस्पर मतान्तर है और वह भी सर्वोच्च न्यायिक संस्था के अत्यंत ही तीखे और सरकार के सार्वजनिक उत्तरदायित्व जैसे बेहद गंभीर सवाल पर... इस नाटकीय घटनाक्रम ने जाहिर तौर पर सरकार के चेहरे को तो बेनकाब कर ही दिया है लेकिन देखना यह होगा कि सरकार के इस बेहद ही गैर जीम्मेदाराना कृत्य को न्याय का सर्वोच्च मंदिर किस रूप में लेता है ... यह न्याय का वही मंदिर है जिसकी ओर देखकर शायद सूर्यनमस्कार भी आम आवाम के लिए अवमानन कि श्रेणी में आता है ... निःसंदेह सुर्खिया रोज ही बदल जाया करती है ... मगर मिसाल हमेशा कायम रहा करती हैं ... उम्मीद है कि सरकार की यह बेहयाई कभी मिसाल नहीं बन पायेगी...