Wednesday, February 9, 2011

टँगी मुसीबतें...

.... आइसक्रीम के पहाड़ , दूध की नदियाँ और पेड़ पर लटकी टाफियां ... एक फ़िल्मी गाने में यह दृश्य देख कर मुझे अनायास ही कुछ ख्याल आया और मै कल्पनाओ के परवाज पर सवार हो उडान भरने लगा ... मैं सोचने लगा कि यदि टाफियों की तरह मुसीबतें भी पेड़ो पर उगा करती तब कैसा होता ... सभी के अपने घर और उस घर के पेड़ों पर साफ़ साफ़ लटकती अपनी अपनी मुसीबतें ... मै कुछ इसी उधेड़बुन मे लगा ही था कि तभी सफ़ेद घोड़े पर सवार एक यक्ष दहाड़ता मेरे सामने प्रगट हो गया ... तीखे तेवर अपनाता स्निग्ध श्वेत वर्णी यक्ष मुझसे कुछ कहता उससे पहले ही मै बोल उठा ... आखिर मेरा कसूर क्या है ... यक्ष अपना तेवर बदले बिना लगभग उसी अंदाज मे बोला " मृत्युलोक में रहकर भी स्वर्गलोक की कल्पना... मेरे अन्दर मची हलचल से बिलकुल अनभिज्ञ यक्ष तभी नसीहत के अंदाज में बोला ... अगर लोगों की मुसीबतें यु पेड़ों पर लटकी अगर दिखाई देने लगी तब दुनिया में तो हर शख्स खुशहाल हो गायेगा... यक्ष की बातें मुझे पहेली की तरह लगने लगीं ... यक्ष ने अपनी बात जरी रखतें हुए कहा " इन्सान अपनी ख़ुशी से कम खुश मगर दूसरों के गम से बहुत ज्यादा आल्हादित रहता है ... अगर ऐसे में वह अपने पड़ोस के पेड़ पर लटकती मुसीबतों को देखता रहेगा तब इस बात का सवाल ही नहीं की वह कभी दुखी हो ... भले ही उसका खुद का पेड़ मुसीबतों से भरा हो मगर उसे इस बात का सुकून होगा की उसके पडोसी के घर कुछ ही सही मगर मुसीबत तो है ... इस हालत में गम के क्विन्तालों बोझ तले दबे चेहरों पर भी सुकून की एक कुटिल ही सही मगर मुस्कान जरूर होगी... और यही तो स्वर्गलोक है जहा सभी के दिलों मैं सुकून हो और चेहरों पर मुस्कान"... यक्ष की बातें अब मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी थीं ... तभी स्वप्ना टूटा और मैं बहार निकल कर लोगों से नजरें बचाता हुआ कोई पेड़ तलाशने लगा ...

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